5 श्रवण बाधित बालक [HEARING IMPAIRED CHILDREN]
आँख की भाँति कान भी मनुष्य की महत्त्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रिय है। यदि किसी व्यक्ति को सुनने, ध्वनियों को पहचानने और उनका सही अर्थ लगाने में असुविधा का सामना करना पड़ता है तो वे श्रवण दोषों से युक्त असमर्थता का शिकार माने जाते हैं। श्रवण समस्या को हम श्रवण बाधिता के रूप में भी वर्णित कर सकते हैं। जितनी ज्यादा असमर्थता होगी, बाधिता भी उतनी ही अधिक होगी। जब बच्चा पूर्ण रूप से बाधित होता है अर्थात् उसे कुछ भी सुनाई नहीं देता है तो उसे 'बहरा' (Deaf) कहा जाता है। दूसरे प्रकार के बालकों में पूर्ण बहरापन नहीं होता, बल्कि उनकी श्रवण इन्द्रियों में ऐसे दोष पाये जाते हैं जिनकी वजह से उन्हें सामान्य वार्तालाप में कठिनाई आती है। ऐसे बच्चों को "ऊँचा सुनने वाले” (Hard of Hearing) बालक कहा जाता है। ऐसे बच्चों के साथ या तो काफी जोर से बोलना पड़ता है या श्रवण यन्त्रों के प्रयोग से इनकी परेशानी कम की जा सकती है। बच्चा अगर जन्म से ही बहरा है तो वह गूँगा भी होता है। वह अपनी बात केवल इशारों से ही जान व समझ सकते हैं। श्रवण बाधिता को हम श्रवण बाधिता के आधार पर माप सकते हैं। ध्वनि को हम प्रायः डेसीबल में मापते हैं।
श्रवण बाधिता का अर्थ
(MEANING OF HEARING IMPAIRMENT)
श्रवण बाधित बालक ऐसे बालक होते हैं जिनकी सुनने की क्षमता नष्ट हो जाती है तथा उन्हें बोलने और भाषा में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति की भी भाषा सुनने और समझने में परेशानी होती है। इस दृष्टि से श्रवण बाधितों की दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है—
1. पूर्ण श्रवण बाधित
2. आशिक श्रवण बाधित।
कुछ बच्चे जन्मजात बहरे होते हैं या कुछ जन्म के समय तो ठीक पैदा होते हैं लेकिन बाद में किसी चोट या दुर्घटना या बीमारी के कारण अपनी श्रवण शक्ति खो बैठते हैं। ऐसे बच्चे पूर्ण श्रवण बाधित होते
हैं।
आशिक श्रवण बाधित बालक वे बालक होते हैं जो अपनी श्रवण क्षमता कुछ सीमा तक खो बैठते है। ऐसे बच्चे बिना श्रवण यन्त्र या श्रवण यन्त्र की सहायता से आसानी से सुन सकते हैं। ऐसे बच्चों को सामान्य स्कूलों में सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा देने में कठिनाई नहीं आती।
इस प्रकार जब किसी बालक के श्रवण अंगों में कोई दोष होता है तो उसे श्रवण बाधिता कहते हैं। यह दोष कान के बाहर, अन्दर या मध्य में भी हो सकता है। श्रवण बाधित बच्चों को श्रवण प्रशिक्षण तथा श्रवण यंत्र की विशेष रूप से आवश्यकता होती है।
श्रवण बाधित बालकों का वर्गीकरण
(CLASSIFICATION OF HEARING IMPAIRED CHILDREN)
वे सभी बालक जिनको सुनने में किसी भी तरह की कोई कठिनाई होती है, श्रवण बाधित बालक कहलाते हैं। ध्वनि का परिसर । से 130 डेसीबल होता है। 130dB से ऊपर की ध्वनि दर्द की संवेदना देती है। श्रवण बाधित बच्चों को ध्वनि परिसर के अनुसार निम्न चार भागों में बाँटा गया है
1. कम श्रवण बाधिता (Mild Hearing Loss) कम श्रवण बाधितों को 27 से 40dB की श्रवण बाधिता होती है। कम श्रवण बाधित बालक सामान्य स्तर की बातचीत को तो आसानी से सुन लेते हैं, परन्तु उससे धीमे स्तर से बोलने पर ये बालक सुन नहीं पाते है।
2. मन्द श्रवण बाधिता (Moderate Hearing Loss) मन्द श्रवण बाधित बच्चों की श्रवण
शक्ति में 40dB से 55 dB तक का नुकसान होता है। इनको सामान्य वार्तालाप सुनने में भी कठिनाई होती है। इस प्रकार के बच्चे सुनने के यन्त्र का प्रयोग करके सुन सकते हैं। 3. गम्भीर श्रवण बाधिता (Severe Hearing Loss) गम्भीर श्रवण बाधित बच्चों की श्रवण बाधिता 55 dB से 70 dB तक होती है। इन्हें काफी ऊँचा बोलने पर सुनाई देता है। इस प्रकार के बच्चों
को विशेष प्रकार का शिक्षण दिया जाता है।
4. पूर्णतया श्रवण बाधिता (Profound Hearing Loss)– इस प्रकार के बच्चों की श्रवण
बाधिता 70 dB से 90 dB या इससे भी अधिक होती है। इस प्रकार के बच्चों को श्रवण यन्त्र के प्रयोग
के साथ भी सुनने में कठिनाई होती है। ये प्रायः बधिर (Deaf) होते हैं। अतः यह आवश्यक है कि इस
प्रकार के बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाये।
श्रवण बाधिता के कारण
(CAUSES OF HEARING IMPAIRMENT)
श्रवण बाधिता आनुवांशिक या वातावरण दोनों के परिणामस्वरूप हो सकती है। ये दोनों तत्त्व बच्चों की श्रवण क्षमता को प्रभावित करते हैं, जिसके कारण श्रवण बाधिता हो सकती है। आनुवंशिक व वातावरण सम्बन्धी प्रभावों का अध्ययन तीन स्तरों पर किया जा सकता है
1. जन्म से पूर्व के कारण (Prenatal Period)
2. जन्म के समय के कारण (Perinatal Period)
3. जन्म के बाद के कारण (Post-natal Period) 1. जन्म के पूर्व प्रभावित करने वाले कारक—ये निम्न प्रकार हो सकते हैं
(a) आनुवंशिकी (Hereditary) श्रवण सम्बन्धी दोषों का एक प्रमुख कारण आनुवंशिकता है।
यदि माता-पिता में से किसी को भी श्रवण दोष होता है तो बालक में श्रवण दोष होने के अधिक आसार होते हैं। माता-पिता के द्वारा दोषपूर्ण जीन्स व क्रोमोसोम के कारण यह रोग हो सकता है।
(b) दवाओं का उपयोग गर्भावस्था के दौरान प्रयोग की जाने वाली दवाइयाँ स्ट्रेप्टोमाइसिन L.S.D. आदि विभिन्न प्रकार की दवाइयों के प्रयोग से भ्रूण शीशु को नुकसान होता है तथा ये श्रवण बाधिता के कारण बन सकते हैं। इसलिए गर्भवती महिला को इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(c) रूबैला (Rubella) रूबैला एक जर्मन खसरा है जो मुख्यतः गर्भवती महिलाओं में होता है। श्रवण बाधितों में 30% बच्चे जर्मन खसरा से प्रभावित पाये जाते हैं। यह देखा गया है कि जो गर्भवती माताएँ इस बीमारी से पीड़ित हुई, उनकी सन्ताने श्रवण बाधित हुई।
(d) संक्रमण या छूत रोग (Infectious Diseases)– गर्भवती माँ को होने वाली छूत की बीमारियों, जैसे—कनफेड़ और इन्फ्लूएन्जा आदि के कारण बच्चे की श्रवण शक्ति प्रभावित होती है।
(c) कुपोषण व भुखमरी (Malnutrition and Starvation)–बालक अपने पोषण हेतु गर्भकाल में भोजन ग्रहण करता है इसलिए माँ के खान-पान, स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना चाहिए। गर्भवती माँ को विटामिन आदि से भरपूर भोजन करना चाहिए तथा कुपोषण से बचना चाहिए। कुपोषण व मुखमरी भी श्रवण बाधिता का एक कारण बन सकता है। माँ द्वारा जहरीले पदार्थ व शराब का सेवन भी बच्चे को श्रवण बाधित बना देता है.
2. जन्म के समय प्रभावित करने वाले कारक अध्ययनों से पता चला है कि समय से पहले प्रसव व कम वजन वाले बच्चों में श्रवण बाधिता अधिक पायी जाती है। जन्म के समय बहुत से कारक ऐसे होते हैं जो बच्चे की श्रवण क्षमता को प्रभावित करते हैं, जैसे ऑक्सीजन की कमी, प्रसव के दौरान प्रयोग किये जाने वाले आजार, एन्सथेटिक दवाइयों का प्रयोग प्रसव के समय अधिक रक्त प्रवाह आदि अनेक कारणों से बच्चों में श्रवण बाधिता हो सकती है।
3. जन्म के बाद प्रभावितवालेकरने वाले कारक शिशुकाल में ही यदि बच्चे वाले को संक्रमणकोया
बीमारियाँ हो जाती हैं तो वे बच्चे के लिए श्रवण सम्बन्धी दोष पैदा कर सकती हैं। कोई दुर्घटना, कान
की बीमारी आदि विभिन्न कारण भी बच्चे की श्रवण शक्ति कम कर सकते हैं। जन्म के बाद श्रवण
बाधिता के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन इस प्रकार है
(a) मेनिनजाइटिस (Meningitis)- यह एक बैक्टीरिया या वायरस से होने वाला संक्रमण है जो केन्द्रीय स्नायु संस्थान में होता है। इस संक्रमण के कारण पूर्ण श्रवण बाधिता हो सकती है।
(b) कर्णशोथ (Otitis)—यह भी श्रवण बाधिता का अन्य कारण है जो मध्य कर्ण को प्रभावित करता है। यदि इस रोग का पूर्ण इलाज न किया जाये तो कान में पस बनना या श्रवण बाधिता हो सकती
है। (c) दुर्घटनाएँ (Accidents) कोई दुर्घटना भी श्रवण तन्त्र को हानि पहुँचा सकती है। किसी लकड़ी या पिन से कान का मैल निकालते समय भी बालक अनजाने में कर्णपटल को नुकसान पहुँचा देता है। विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप जब कोई गहरा आघात श्रवण अंगों या मस्तिष्क को पहुँचता है तो उसकी परिणति श्रवण दोषों में होती है।
(d) बीमारियों व संक्रमण-बहुत सी ऐसी बीमारियाँ होती हैं जो श्रवण दोष उत्पन्न करती है, जैसे- चेचक, कनफेड़, खसरा, मोतीझरा, कुकर खाँसी व कान में मवाद आदि अनेक बीमारियाँ है जिनके कारण श्रवण दोष पैदा होते हैं। इन दोषों के निवारण के लिए ली गयी दवाइयों के गलत प्रभाव से भी श्रवण दोष हो सकता है।
(e) शैशवकाल में बालक यदि कुपोषण, भुखमरी तथा मिलावटी खाद्य पेय पदार्थों के हानिकारक प्रभावों का शिकार हो जाये तो उसके परिणामस्वरूप उसकी श्रवण शक्ति नष्ट हो जाती है।
श्रवण बाधित बच्चों की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF HEARING IMPAIRED CHILDREN)
1. भाषा का विकास (Language Development) श्रवण बाधित बच्चों की सामान्य बच्चों की तुलना में भाषा की समस्याएँ अधिक होती है। भाषा के सम्बन्ध में बहरे बच्चे दो प्रकार के होते हैं- (1) भाषा ज्ञान से पहले (Prelingually) के बधिर बालक तथा (2) भाषा ज्ञान के बाद (Post lingually) के बधिर बालक। पहले प्रकार के बालक भाषा ज्ञान सीखने से पहले ही अपनी श्रवण शक्ति खो देते हैं और दूसरे प्रकार के बधिर बालक भाषा सीखने के बाद जीवन की किसी भी अवस्था में अपनी श्रवण शक्ति खो बैठते हैं।
भाषा सीखने से पहले के व भाषा सीखने के बाद के दोनों को ही भाषा सम्बन्धी समस्याएँ होती है। लेकिन भाषा सीखने के बाद श्रवण बाधित होने वाले बच्चों को भाषा सीखने से पहले श्रवण बाधित बच्चों की अपेक्षा आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता है। सामान्य बच्चे आसानी से भाषा ग्रहण कर लेते हैं, लेकिन श्रवण बाधित बच्चों को शब्दों को सुनने का कोई अनुभव नहीं होता, इसलिए उन्हें भाषा सम्बन्धी ज्ञान कराया जाता है। श्रवण बाधित बच्चों को भाषा प्रशिक्षण द्वारा विभिन्न प्रकार के उपकरणों व सामग्रियों द्वारा भाषा का ज्ञान कराया जाता है। श्रवण बाधित बच्चों में पढ़ने व गणित सम्बन्धी आवश्यक योग्यता का अभाव पाया जाता है।
2. बुद्धि (Intelligence)– श्रवण बाधित बालकों का मानसिक विकास सामान्य बालकों के समान ही होता है। परन्तु कुछ श्रवण बाधित बच्चों की बुद्धिलब्धि (I.Q.) सामान्य अवस्था में कम होती है। कुछ श्रवण बाधित बच्चे अमूर्त चिन्तन व प्रत्यय निर्माण में कठिनाई का अनुभव करते हैं। बौद्धिक अशाब्दिक परीक्षा में इनकी बुद्धिलब्धि उच्च स्तर की होती है।
3. शब्दावली कौशल (Vocabulary Skills)—इनका शब्दावली कौशल निम्न प्रकार का होता
है। इनकी शब्दावली सीमित होती है। दूसरे लोगों से सम्प्रेषण करते समय इनके पास प्रायः शब्द नहीं
होते हैं। सीमित शब्दावली के कारण ये अपनी भाषा सम्बन्धी योग्यता में निम्न होते हैं।
4. व्यक्तिगत समस्याएँ (Personality Problems) शाब्दिक सम्प्रेषण में निम्न निष्पत्ति के कारण ये अपनी आपको सामान्य बच्चों की अपेक्षा क्षुब्ध समझते हैं। इनमें आत्मविश्वास निम्न होता है। बहुत-से श्रवण बाधित बच्चे या तो अधिक आज्ञाकारी होते हैं या दब्बू किस्म के होते हैं।
5. उच्चारण (Pronunciation)
इनको उच्चारण सम्बन्धी कठिनाई का सामना करना पड़ता
है। इनके द्वारा बोले जाने वाले शब्दों में बहुत त्रुटियाँ होती है। श्रवण बाधित बच्चों में भाषा के उच्चारण
में अधिक दोष होता है। 6. आवाज (Voice) इनकी आवाज बहुत ऊँचे स्तर की होती है और अपनी आवाज को एक असाधारण लय के साथ पेश करते है अर्थात् इनकी आवाज में एक असाधारण-सा संगीत होता है। ये आवाज के साथ परिश्रम करते महसूस होते हैं।
7. शैक्षिक उपलब्धि (Academic Achievement) शैक्षिक निष्पत्ति की दृष्टि से ऐसे बच्चों में अधिक भिन्नता पायी जाती है। इनको सम्प्रत्यय निर्माण में पढ़ने में, शब्दावली में अमूर्त चिन्तन में, शाब्दिक भाषा में बहुत सी समस्याएँ आती है। इस प्रकार ऐसे बच्चों की शैक्षिक निष्पत्ति निम्न स्तर की होती है, क्योंकि शैक्षिक निष्पत्ति में शाब्दिक योग्यता की अहम् भूमिका होती है। ऐसे बच्चों को बौद्धिक स्तर तो ऊँचा होता है, परन्तु फिर भी इनकी शैक्षिक उपलब्धि अधिक नहीं हो पाती है।
8. सामाजिक व संवेगात्मक विशेषताएँ (Social and Emotional Characteristics) श्रवण बाधित बच्चों की सामाजिक व संवेगात्मक विशेषताएँ सामान्य बच्चों से भिन्न होती है। सामाजिक कौशल के लिए हम भाषा का प्रयोग करते है, जिसकी इनमें कमी होती है। ऐसे बच्चों में पारस्परिक सम्प्रेषण की समस्या होती है और शाब्दिक अन्तक्रिया नहीं होती है। अक्सर इस प्रकार के बालक भावनात्मक व्यवहार में असामान्य होते हैं, क्योंकि दूसरों की बात को समझ नहीं पाते। कभी-कभी अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए वे असामान्य व्यवहार भी करने लगते हैं।
श्रवण बाधित बच्चों की पहचान
(IDENTIFICATION OF HEARNING IMPAIRED CHILDREN)
श्रवण बाधित की पहचान और श्रवण बाधित बच्चों की देखभाल दोनों ही शिक्षा में तथा इन बच्चों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। माता-पिता व परिवार के अन्य लोग इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। माता-पिता व अन्य सदस्यों द्वारा बच्चे का क्रमिक अवलोकन किया जा सकता है जो इनकी पहचान में बहुत सहायक होता है।
यदि इन बच्चों की समय रहते पहचान अर्थात् शुरुआती अवस्था में ही पहचान हो जाती है तो इनकी रोकथाम के लिए समय से कार्यक्रम शुरू किये जा सकते हैं। आवाज के प्रति यदि बच्चा प्रतिक्रिया न करे तो माता-पिता को बच्चे का श्रवण बाधित होने का हो जाता है। ऐसे में माता-पिता को श्रवण विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। श्रवण बाधित बच्चों की पहचान के लिए कुछ टैस्ट तकनीकों का प्रयोग किया जाता है, जो इस प्रकार है
1. मनोनाड़ी परीक्षण (Neuropsychological Test)
3. विकासात्मक मापनी (Development Scale) 4. डॉक्टरी परीक्षण (Medical Examination)
1. मनोनाड़ी परीक्षण (Neuropsychological Test) इन परीक्षणों की सहायता से श्रवण बाधिता से सम्बन्धित नाड़ी की क्रियाओं का आकलन किया जाता है। इसका कारण मानसिक दोष होता है। एक योग्य चिकित्सक इसकी पहचान करके इनका उपचार कर देता है। अधिकांश श्रवण बाधितों में इसी प्रकार का दोष पाया जाता है।
3. विकासात्मक मापनी (Development Scale) बालक के विकास की अवस्थाओं का सीधा सम्बन्ध उसकी इन्द्रियों से होता है। इसलिए श्रवण बाधित बच्चों की पहचान के लिए उनकी विकासात्मक अवस्थाओं को ध्यान में रखा जाता है। वायले ने छोटे बच्चों के लिए एक मापनी विकसित की, जिसकी सहायता से ऐसे बच्चों का आरम्भिक अवस्था में ही निदान हो जाता है।
4. डॉक्टरी परीक्षण (Medical Examination) मेडिकल परीक्षणों की सहायता से श्रवण बाधितों की पहचान आसानी से हो जाती है। इसमें चिकित्सक की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। साधारणतः श्रवण बाधिता बालक के व्यक्तित्व को भी प्रभावित करती है।
श्रवण बाधितों की पहचान सम्बन्धी व्यवहारात्मक लक्षण (BEHAVIOURAL INDICATORS FOR INDENTIFICATION OF HEARING IMPAIRED CHILDREN)
श्रवण बाधित बच्चों की पहचान के लिए व्यवहार निरीक्षण अधिक उपयोगी माना जाता है, क्योंकि बच्चों के निरीक्षण से ही उसकी श्रवण बाधिता का बोध होता है। कुछ मुख्य व्यवहारात्मक लक्षणों का वर्णन इस प्रकार है
1. वाणी दोष का होना।
3. इनमें अवधान का अभाव होता है।
4. अपने सिर को एक तरफ मुड़कर बात को सुनने का प्रयत्न करते हैं।
6. अक्सर कान में दर्द रहता है।
18. ऐसे बच्चों की दृष्टि बोलने वाले के होंठों की तरफ अधिक रहती है। 9. ये सीमित शब्दावली का प्रयोग करते हैं।
10. इनकी भाषा का सही विकल्प नहीं होता है। 11. ये वाद-विवाद कार्यक्रम में हमेशा संकोच करते हैं।
12. अक्सर इनका कान बहता रहता है।
13. कक्षा में बालक कान में आवाज सुनने के यन्त्र का प्रयोग करता है।
इस प्रकार के व्यवहार से अध्यापक श्रवण बाधित बालक की पहचान आसानी से कर सकता है।
अतः अध्यापक को ऐसे बच्चों पर पूरा ध्यान देना चाहिए।
श्रवण बाधित बच्चों की शिक्षा
(EDUCATION OF HEARING IMPAIRED CHILDREN)
श्रवण बाधित बच्चों के लिए चार प्रकार की स्थानापन्न सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। श्रवण बाधित बालकों की दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं को सुचारू रूप से करने के लिए कुछ सुविधाएँ दी जानी चाहिए। चार प्रकार की स्थानापन्न सुविधाएँ इस प्रकार है
1. समन्वित कक्षाकक्ष (Integrated Classrooms )
2. नियमित विद्यालयों में विशेष कक्षा (Special Class in Regular School) 3. विशेष विद्यालय (Special Schools)
4. आवासीय विद्यालय (Residential Schools)
1. समन्वित कक्षाकक्ष (Integrated Classrooms) इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था
में श्रवण
बाधित बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ सामान्य विद्यालयों में शिक्षित किया जा सकता है। कम (Mild)
श्रवण बाधित बच्चों को समन्वित शिक्षा व्यवस्था के द्वारा शिक्षित किया जाता है। उसकी आवश्यकताओं और समस्याओं को एक नियमित अध्यापक विशेषज्ञों और संसाधन कक्ष सुविधाओं की सहायता से हल कर सकता है।
2. नियमित से विद्यालयों में विशेष से कक्षा (Special Class in Regular School) कम व मन्द से गति के श्रवण बाधित से बच्चों के लिए नियमित से विद्यालयों में विशेष कक्षाओं से की व्यवस्था की जाती से है। इन बच्चों को सामान्य बच्चों से अलग कक्षाओं में शिक्षण प्रदान किया जाता है। इन बालकों की अधिगम कमियों को पृथक् कक्षाएँ आयोजित करके दूर किया जा सकता है। इन पृथक् कक्षाओं में प्रशिक्षित अध्यापक अन्य अध्यापकों के सहयोग से अपना कार्य करते हैं।
3. विशेष विद्यालय (Special Schools)–जो बालक गम्भीर श्रवण बाधिता से पीड़ित होते हैं उनके लिए विशेष विद्यालयों की व्यवस्था की जाती है। इन बच्चों को सामान्य विद्यालयों में सामान्य बच्चों
के साथ शिक्षित नहीं किया जा सकता। यहाँ पर बच्चों को एक विशेष पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है तथा ये
सामान्य बच्चों का श्रवण बाधिता के कारण मुकाबला नहीं कर सकते।
4. आवासीय विद्यालय (Residential Schools) पूर्ण रूप से बधिर या पूर्णतया श्रवण बाधित बच्चों के लिए आवासीय विद्यालयों की व्यवस्था की जाती है। इन बच्चों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। यहाँ बधिरों को शिक्षित करने सम्बन्धी सभी उपकरण, सामग्री सुविधाएँ और प्रशिक्षित अध्यापकों की व्यवस्था होती है।
सम्प्रेषण कौशल
(COMMUNICATION SKILLS)
श्रवण की बाधित की बच्चों की सबसे बड़ी की समस्या की सम्प्रेषण की समस्या है। वे उस स्थान की पर अपने आपको छोटा की महसूस करते हैं जहाँ पर की शाब्दिक सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है। वह अध्यापक जिनके द्वारा इन की बच्चों को शिक्षित किया की जाता है उन्हें भी सम्प्रेषण सम्बन्धी की समस्या का सामना करना पड़ता है और ये अध्यापक की ही इन बच्चों को सिखाते है कि अपने साथी समूह व समाज के दूसरे लोगों के साथ किस प्रकार सम्प्रेषण किया जाता है। अध्यापक द्वारा इनको सम्प्रेषण कौशल सिखाने के लिए निम्न प्रविधियो का प्रयोग किया जाता है
1. मौखिक की सम्प्रेषण प्रविधि (Oral/Aural Communication Approach)—इस प्रविधि द्वारा की इस बात पर जोर दिया जाता है कि श्रवण बाधिताग्रस्त बच्चों की के सम्प्रेषण कौशल को विकसित करने के लिए मौखिक भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए। यह इस विश्वास पर आधारित है कि हाथों द्वारा सम्प्रेषण के लिए की मौखिक सम्प्रेषण आवश्यक है, क्योंकि हाथों द्वारा किया की जाना वाला सम्प्रेषण समाज में समायोजन की सम्बन्धी बाधा पैदा की करता है।
मौखिक सम्प्रेषण विधि की सभी तकनीकों में श्रवण की बाधित बच्चों को यह सिखाया की जाता है कि वे अपनी बची हुई श्रवण क्षमता को किस प्रकार प्रयोग कर की सकते हैं। सभी तकनीकों को इसलिए प्रयोग किया जाता है ताकि बची हुई की श्रवण क्षमता का विकास हो सके और बोलने की योग्यता का भी जितना हो सके उतना की विकास करना। ये तकनीकें की इस प्रकार हैं
(a) ध्वनि प्रशिक्षण (Auditary Training)
(b) ओष्ठ पठन (Speech Reading)
(a) ध्वनि प्रशिक्षण (Auditory Training) इसके अन्तर्गत बच्चे की को उसी श्रवण क्षमता के साथ प्रशिक्षित करना है जितनी उनके पास है। इस तकनीक की द्वारा बच्चों को ध्वनि जागरूकता के बारे में सिखाया की जाता है तथा विभिन्न प्रकार की आवाजों में विभेदीकरण करना सिखाया जाता है। कम श्रवण बाधित बच्चों के लिए ध्वनि प्रशिक्षण पर बहुत जोर की दिया जाता है। Corhart (1960) और Sanders 1971) ने ध्वनि प्रशिक्षण तकनीक के तीन मुख्य उद्देश्य / लक्ष्य बताये है
(1) ध्वनि सम्बन्धी जागरूकता का विकास।
(ii) विभिन्न प्रकार की ध्वनियों में विभेदीकरण सम्बन्धी योग्यता का विकास।
(iii) ओष्ठ ध्वनियों को उच्च व निम्न अनावश्यक परिस्थितियों में विभेदीकरण सम्बन्धी योग्यता का
विकास ॥
(b) ओष्ठ पठन (Lip Reading/ Speech Reading) ओष्ठ पठन में बालकों को होठों के
हिलने व गति के आधार पर की वर्णों व शब्दों को पढ़ने की शिक्षा दी जाती है। ओष्ठ पठन में दो प्रकार की के उपागमों का प्रयोग किया जाता है। पहली एनालिटिकल विधि (Analytical method) है, जो इस बात पर जोर देती है कि पाठ्य-सामग्री की के छोटे-छोटे शब्दों से वाक्य की बनाना चाहिए। दूसरी उपागम की सिन्थेटिक पंक्रिया (Synthetic Approach) है। यह इस बात की पर जोर देती है कि बच्चे की को अपनी पाठ्य सामग्री पर एकाग्र होना चाहिए न कि वैयक्तिक की ध्वनियों पर।
2. मैनुअल सम्प्रेषण प्रविधि (Manual Communication Approach) श्रवण बाधितों में आवश्यक सम्प्रेषण कौशल विकसित करने के लिए यह प्रविधि मैनुअल सम्प्रेषण विधियों, जैसे–चिन्ह भाषा (Sign language) और फिंगर स्पेलिंग (Finger spelling) आदि पर जोर देती है। यह विधि अत्यधिक बहरे बच्चों के लिए उपयुक्त है।
(a) चिन्ह भाषा (Sign Language) अत्यधिक श्रवण बाधित बच्चों के लिए चिन्ह भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। यह भाषा सामान्य भावों को समझाने के लिए हावभावों की एक प्रणाली है। चिन्ह भाषा में शब्दों, वर्णों के लिए चिन्ह बने रहते हैं। अब विशेषज्ञ चिन्ह भाषा को प्रभावित कर रहे हैं ताकि उसे अधिकतर स्कूलों में बोला जा सके और सामान्य बातचीत में तथा टेलीविजन में उसका प्रयोग हो सके। कक्षा में पढ़ाते समय अध्यापक को इस सांकेतिक भाषा का प्रयोग अधिक से अधिक करना चाहिए। इस प्रकार की सांकेतिक व्यवस्था में हाथों व उँगलियों के प्रयोग द्वारा कुछ दृश्य संकेत बनाये जाते हैं। हमारे देश में भी श्रवण बाधित बच्चों के लिए चिन्ह भाषाओं का प्रयोग किया जाता है तथा ये चिन्ह भाषाएँ हिन्दी तथा अन्य प्रादेशिक भाषाओं में भी उपलब्ध होती हैं।
(b) फिगर स्पेलिंग (Finger Spelling)-इस विधि के अन्तर्गत हवा में उँगलियों द्वारा आकृतियाँ बनाकर लिखा जाता है। इसमें वे शब्द जिनके लिए कोई संकेत या चिन्ह नहीं होता है, जैसे किसी व्यक्ति का नाम लिखा जाता है। इसमें अक्षरों को उँगलियों की स्थिति का प्रयोग करके समझाना होता है। फिंगर स्पेलिंग को संकेत या चिन्ह भाषा की अपेक्षा समझना कठिन होता है, क्योंकि यह अधिक एकाग्रता द्वारा ही सीखी जाती है।
3. सम्पूर्ण सम्प्रेषण विधि (Total Communication Method) यह नवीन विधि हाल ही में विकसित हुई है। इस विधि में फिंगर स्पेलिंग संकेत भाषा चिन्ह भाषा, ओष्ठ पठन, मौखिक सम्प्रेषण व ध्वनि प्रशिक्षण आदि सभी विधियों तथा साधनों का मिश्रण कर दिया जाता है। शाब्दिक या वैयक्तिक विधि सभी प्रकार के श्रवण बाधितों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। अतः यह सम्पूर्ण सम्प्रेषण विधि विभिन्न स्कूलों में अधिक लोकप्रिय हो रही है। सम्पूर्ण सम्प्रेषण विधि का प्रत्यय पहली बार रॉय हॉल्कम्ब (Roy Holcomb) ने दिया था और श्रवण बाधितों के लिए शिक्षण तकनीक के रूप में इसका प्रयोग 1960 से किया गया।
सामान्य शिक्षण प्रक्रिया
(GENERAL TEACHING PROCESS) सामान्य शिक्षण प्रक्रिया में श्रवण बाधित बच्चों को शिक्षित करने के लिए निम्न प्रकार की विशेष व सामान्य व्यवस्था होनी चाहिए
1. कक्षा में मौखिक सम्प्रेषण प्रदान करने के लिए दृश्य उद्दीपकों का प्रयोग किया जाना चाहिए। शिक्षण विषयवस्तु को विभिन्न प्रकार की सहायक सामग्रियों, चित्र, मॉडल, मानचित्र आदि की सहायता से पढ़ाया जाना चाहिए।
2. क्योंकि ऐसे बच्चों की शिक्षण प्रक्रिया में अध्यापक के हावभाव, अंग संचालन तथा होठों के
संचालन आदि का बहुत महत्त्व होता है इसलिए अध्यापकों का अपना चेहरा सम्प्रेषण प्रक्रिया के
अन्तर्गत बच्चों के सामने होना चाहिए।
3. श्रवण बाधितों की शिक्षा वाणी चिकित्सा, विशेष अध्यापक मनोवैज्ञानिक तथा निर्देशनकर्ता औ
आदि का मिला-जुला परिणाम होनी चाहिए। 4. आवश्यकतानुसार बहुइन्द्रिय उपागमों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
5. ऐसे बच्चों के व्यवहार के आधार पर इनकी पहचान करनी चाहिए और सामान्य कक्षा में इन्हें आगे की सीटों पर बिठाने की व्यवस्था करनी चाहिए।
6. शिक्षक को बोलते समय एक ही स्थान पर खड़ा रहना चाहिए। बोलते समय चलने-फिरने से
ऐसे बच्चों को अधिक कठिनाई होती है, क्योंकि शिक्षक की वाणी में उतार-चढ़ाव आ जाता है।
7. शिक्षण में बीच-बीच में प्रश्न पूछते रहना चाहिए। प्रश्न पूछने से यह पता चलता है कि बालक पढ़ायी गयी बात को कितना समझ रहा है।
8. कक्षाकक्ष में कम से कम बाध्यताएँ होनी चाहिए तथा कक्षाकक्ष शान्त व शोरमुक्त होना चाहिए। 9. श्रवण बाधित बच्चों में लिखित कौशल विकसित करने के लिए अध्यापक द्वारा पर्याप्त गृहकार्य
व लिखित प्रशिक्षण में सहायक क्रियाओं का प्रयोग किया जाना चाहिए।
10. शिक्षण सम्बन्धी मुख्य मुख्य बातों को दृश्य प्रदर्शन द्वारा कक्षा के अन्त में दोहराना चाहिए। 11. शिक्षक को उनके प्रति धनात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए और उनके प्रति सहानुभूतिपूर्ण
व्यवहार करना चाहिए।
12. कक्षा में श्रवण बाधित बच्चों का प्रतिशत बहुत कम होता है। इसलिए शिक्षक को कक्षा से अलग उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनकी सहायता करनी चाहिए, जिससे वे कक्षा में कठिनाई का अनुभव न करें।
13. एक सामान्य शिक्षक श्रवण बाधितों की सभी कठिनाइयों को हल नहीं कर सकता, इसलिए उसे स्रोत शिक्षक की भी सहायता लेनी चाहिए।
14. शिक्षक को पाठ्य सहगामी क्रियाओं में श्रवण बाधित बच्चों की भागीदारी का अवसर प्रदान करना चाहिए।
बहुत-से श्रवण बाधित बच्चों की जल्दी पहचान तथा श्रवण यन्त्रों के उचित प्रयोग द्वारा आसानी से एकीकृत किया जा सकता है। श्रवण बाधितों को शिक्षा प्रदान करना सामान्य अध्यापक के लिए ही नहीं. त्यल्कि विशेष अध्यापक के लिए भी एक चुनौती है। समुदाय के लिए भी ऐसे बच्चों को अपनाना चुनौतीपूर्ण कार्य होता है।
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